यह खबर एक महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाती है जो शिमला से कांगड़ा ( shimla kangra fourlane ) तक के राष्ट्रीय राजमार्ग को फोरलेन बनाने की योजना से जुड़ा हुआ है। इस योजना के तहत, कुछ हिस्सों में टू-लेन निर्माण ने फोरलेन परियोजना की पारदर्शिता और दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर सवाल खड़े किए हैं।

मुख्य बिंदु:
- भूमि अधिग्रहण की समस्या:
फोरलेन के लिए 45 मीटर भूमि की आवश्यकता होती है, लेकिन भंगवार से कोहली तक के 50 किलोमीटर हिस्से में केवल 30 मीटर भूमि अधिग्रहित की गई है। इसका मतलब है कि यह हिस्सा भविष्य में फोरलेन में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। - राजनीतिक बयान और वादे:
- मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पूरे मार्ग को फोरलेन बनाने का वादा किया है।
- सांसद अनुराग ठाकुर ने ट्रैफिक लोड का हवाला दिया है, जो यह तय करने में एक कारक हो सकता है कि कहां फोरलेन आवश्यक है।
- Shimla matour fourlane प्रोजेक्ट की वर्तमान स्थिति:
- एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर के अनुसार, मटौर से कोहली तक का निर्माण जून 2025 तक पूरा हो जाएगा।
- भगेड़ तक के हिस्से के लिए मंत्रालय से कोई नई गाइडलाइन नहीं आई है।
- Matour shimla fourlane परियोजना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- यह फोरलेन परियोजना 2016 में घोषित हुई थी।
- 2017 में इसका सर्वे शुरू हुआ और इसे पांच पैकेजों में विभाजित किया गया।
- इस फोरलेन के बनने से 223 किलोमीटर की दूरी घटकर 177 किलोमीटर रह जाएगी।
सवाल जो उठते हैं:
- क्या टू-लेन निर्माण दीर्घकालिक समाधान है?
यदि भविष्य में ट्रैफिक लोड बढ़ता है, तो यह टू-लेन हिस्सा अपर्याप्त हो सकता है। - फंडिंग और योजना की स्पष्टता:
क्या सरकार के पास इस परियोजना को पूरी तरह फोरलेन में बदलने के लिए पर्याप्त फंडिंग और ठोस योजना है? - भविष्य की योजना:
भगेड़ से आगे के हिस्से के लिए क्या योजना है? क्या इसे भी टू-लेन में बनाया जाएगा या फोरलेन में?
निष्कर्ष:
इस मुद्दे पर स्थानीय लोगों, प्रशासन और सरकार को एक साथ आकर चर्चा करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह परियोजना दीर्घकालिक ट्रैफिक जरूरतों को पूरा कर सके। फोरलेन के नाम पर टू-लेन निर्माण से जनता का विश्वास डगमगा सकता है।





Leave a Reply